राजस्थान के स्कूलों में अब पढ़ाया जाएगा खेजड़ली बलिदान — राज्य मंत्री के के बिश्नोई का है अहम योगदान

राजस्थान बिश्नोई समाचार जयपुर राजस्थान राज्य शैक्षिक प्रशिक्षण परिषद (SCERT) उदयपुर के पाठ्यक्रम में अब कक्षा 3, 4 और 5 के विद्यार्थियों को मां अमृतादेवी बिश्नोई के नेतृत्व में 1730 में हुए ऐतिहासिक खेजड़ली बलिदान की प्रेरक गाथा पढ़ाई जाएगी। यह निर्णय राजस्थान के साथ-साथ पूरे देश के लिए पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

मुक्तिधाम मुकाम से मिली स्वीकृति
7 अक्टूबर 2024 को भारत सरकार के मंत्री श्री जयंत चौधरी जब बीकानेर स्थित बिश्नोई समाज के सबसे बड़े धार्मिक स्थल मुक्तिधाम मुकाम पधारे, तब अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री देवेंद्र बुड़िया एवं राजस्थान सरकार के युवा खेल राज्य मंत्री श्री के.के. बिश्नोई, पूर्व विधायक बिहारी लाल बिश्नोई के नेतृत्व में समाज की ओर से उनका भव्य स्वागत किया गया। इस अवसर पर मंत्रीजी से अनुरोध किया गया कि खेजड़ली बलिदान और गुरु जम्भेश्वर भगवान की पर्यावरणीय शिक्षाओं को स्कूली पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए।

श्री जयंत चौधरी ने मंच से ही इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार करते हुए तत्काल स्वीकृति दी। इसके बाद जाम्भाणी साहित्य अकादमी के विद्वानों ने पाठ्य सामग्री तैयार कर SCERT को भेजी। परिणामस्वरूप, कक्षा 3 और 5 में खेजड़ली बलिदान और कक्षा 4 में राजस्थानी संस्कृति से संबंधित पाठ को पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया गया है। अन्य कक्षाओं के लिए भी सामग्री निर्माण की प्रक्रिया जारी है।
राज्यमंत्री श्री के.के. बिश्नोई का महत्त्वपूर्ण योगदान

इस ऐतिहासिक उपलब्धि को साकार करने में राज्य सरकार के मंत्री श्री के.के.बिश्नोई की भूमिका अत्यंत सराहनीय रही। जाम्भाणी साहित्य अकादमी से घनिष्ठ रूप से जुड़े होने के नाते उन्होंने भारत सरकार मंत्री श्री जयंत चौधरी से व्यक्तिगत संपर्क कर पूरे प्रस्ताव को क्रियान्वित करने में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने मंत्रालय स्तर पर लगातार समन्वय किया और समाज की भावना को सरकार तक पहुंचाया।

जाम्भाणी साहित्य अकादमी का योगदान
जाम्भाणी साहित्य अकादमी ने इस कार्य के लिए विशेष पाठ्य सामग्री का निर्माण किया। डॉ. मनमोहन लटियाल द्वारा लिखित इन पाठों में न सिर्फ पर्यावरणीय बलिदान का वर्णन है, बल्कि बिश्नोई समाज की संस्कृति, जीवनशैली और सामाजिक योगदान की भी झलक मिलती है। अकादमी की अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) इंद्रा विश्नोई, पूर्व महासचिव डॉ. सुरेंद्र खिचड़ और महासचिव श्री विनोद जंभदास के सतत प्रयासों से यह कार्य साकार हुआ।

बिश्नोई समाज में खुशी की लहर

इस निर्णय से बिश्नोई समाज में हर्ष और गर्व की लहर है। बुजुर्गों, युवाओं और शिक्षाविदों ने इस कदम का स्वागत करते हुए इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक बताया है। अब देशभर के विद्यार्थी मां अमृतादेवी बिश्नोई और 363 शहीदों की वह वीरगाथा पढ़ सकेंगे, जिसमें खेजड़ी वृक्षों की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दी गई थी।

यह सिर्फ इतिहास नहीं, एक आंदोलन है – पर्यावरण के लिए, संस्कृति के लिए, और चेतना के लिए।

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