राजस्थान बिश्नोई समाचार बाड़मेर एक ओर देशभर में पर्यावरण संरक्षण और हरित ऊर्जा को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र में जीवनदायिनी खेजड़ी पर कुल्हाड़ी चलाने की तैयारी ने इन दावों की पोल खोल दी है।
बाड़मेर जिले के गोरड़िया–बालेवा क्षेत्र में लगभग 4000 बीघा कृषि भूमि पर ACME Solar कंपनी द्वारा सोलर पावर प्रोजेक्ट लगाया जा रहा है। इस परियोजना के तहत 7000 से अधिक वर्षों पुराने खेजड़ी और जाळ के पेड़ों को काटने की योजना बनाई गई है। जानकारी के अनुसार प्रत्येक खेजड़ी के बदले मात्र ₹15,000 का ठेका तय किया गया है।
स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि खेजड़ी केवल एक पेड़ नहीं, बल्कि रेगिस्तान की जीवनरेखा है। यह न सिर्फ मिट्टी को बचाती है, बल्कि पशुपालन और खेती की रीढ़ भी है। खेजड़ी कटने से भू-क्षरण, जल संकट और मरुस्थलीय असंतुलन बढ़ने की आशंका है।
विडंबना यह है कि जहां एक ओर अरावली बचाने के लिए यात्राएं, अभियान और भाषण चल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर थार के रेगिस्तान में सदियों से खड़े पेड़ों को विकास के नाम पर नष्ट किया जा रहा है।
नेताओं की चुप्पी पर सवाल
इस पूरे मामले में मारवाड़ क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों और नेताओं की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है। न तो किसी जनप्रतिनिधि का स्पष्ट बयान सामने आया है और न ही किसी स्तर पर विरोध दर्ज कराया गया है।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि सोलर ऊर्जा ही उद्देश्य है, तो बंजर भूमि या वैकल्पिक क्षेत्रों पर परियोजना स्थापित की जा सकती है। इसके बावजूद खेजड़ी जैसे संरक्षित और पूजनीय वृक्षों को काटना नीति और संवेदना दोनों पर प्रश्नचिह्न है।
कागजों तक सीमित रह गया संरक्षण?
राज्य में खेजड़ी संरक्षण को लेकर कानून और सरकारी घोषणाएं मौजूद हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट नजर आ रही है। सवाल यह उठता है कि क्या खेजड़ी का संरक्षण सिर्फ फाइलों और भाषणों तक सीमित रह गया है?
स्थानीय लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि परियोजना पर पुनर्विचार हो और खेजड़ी की कटाई पर तत्काल रोक लगाई जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए मरुस्थल का जीवन सुरक्षित रह सके।
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