गुरू के बिना भव सागर पार नहीं हो सकता  - स्वामी सच्चिदांनद 

राजस्थान बिश्रोई सामाचार मांगीलाल जाणी सांचौर डेडवा ग्राम में स्थित जम्भेश्वर साथरी पर जम्भसार ज्ञान यज्ञ कथा महोत्सव के चौथे दिन स्वामी सच्चिदांनद ने गुरू के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि भले ही कोई भगवान के समान क्यों न हो वह गुरु के बिना भव सागर पार नहीं कर सकता। वहीं वेदों, उपनिषदों, पुराणों, रामायण, गीता, गुरुग्रन्थ साहिब आदि सभी धर्मग्रन्थों एवं सभी महान संतों द्वारा गुरु की महिमा का गुणगान किया गया है। वहीं उन्होंने कहा कि  गुरु और भगवान में कोई अन्तर नहीं है।  गुरू मनुष्य रूप में नारायण ही हैं। जैसे सूर्य के निकलने पर अन्धेरा नष्ट हो जाता है, वैसे ही उनके वचनों से मोहरूपी अन्धकार का नाश हो जाता है। किसी भी प्रकार की विद्या हो अथवा ज्ञान हो, उसे किसी दक्ष गुरु से ही सीखना चाहिए। जप, तप, यज्ञ, दान आदि में भी गुरु का दिशा निर्देशन जरूरी है कि इनकी विधि क्या है?  अविधिपूर्वक किए गए सभी शुभ कर्म भी व्यर्थ ही सिद्ध होते हैं जिनका कोई उचित फल नहीं मिलता। स्वयं की अहंकार की दृष्टि से किए गए सभी उत्तम माने जाने वाले कर्म भी मनुष्य के पतन का कारण बन जाते हैं। भौतिकवाद में भी गुरू  की आवश्यकता होती है। इस अवसर पर विधायक सुखराम विश्नोई, हिन्दुसिंह दुठवा, पुनमाराम खिचड़, हरीराम बागड़वा, तेजाराम जाणी, रामलाल बेनिवाल, धीमाराम बागड़वा, मोहनलाल सारण, कोजाराम खिलेरी, हरचंदराम बागड़वा, बिरबल खिचड़, जालाराम जाणी सहित बड़ी संख्या में बिश्रोई समाज के लोग मौजूद रहे। 
गुरू के वंचनों पर शंका करना शिष्यत्व पर कंलक - स्वामी सच्चिदांनद ने कहा कि गुरु ज्ञान गुरु से भी अधिक महत्वपूर्ण है। शिष्य गुरु को मानते हैं पर उनके संदेशों को नहीं मानते। इसी कारण उनके जीवन में और समाज में अशांति बनी रहती है। गुरु के वचनों पर शंका करना शिष्यत्व पर कलंक है। जिस दिन शिष्य ने गुरु को मानना शुरू किया उसी दिन से उसका उत्थान शुरू हो जाता है और जिस दिन से शिष्य ने गुरु के प्रति शंका करनी शुरू की, उसी दिन से शिष्य का पतन शुरू हो जाता है। गुरू एक ऐसी शक्ति है जो शिष्य की सभी प्रकार के ताप-शाप से रक्षा करती है। शरणा गत शिष्य के दैहिक, दैविक, भौतिक कष्टों को दूर करने एवं उसे बैकुंठ धाम में पहुंचाने का दायित्व गुरु का होता है।
मानव शरीर पाने के लिए स्वर्ग के देवता तरसते है - स्वामी सच्चिदांनद ने  मानव जीवन के महता के बारे में वर्णन करते हुए कहा कि चौरासी लाख योनियों के मध्ये मानव तन परमपिता परमात्मा की सर्वाेतम कृति है। उन्होंने कहा कि जिस शरीर को पाने के लिए स्वर्ग के देवता तरसते रहते है,  वह आपको मिल चुका है। दृश्यमान जगत में इस शरीर के अतिरिक्त जितने शरीर है, समस्त योग योनि का गयी है, अर्थात उन शरीरों के द्वारा केवल पूर्व जन्म कृत कर्मों का फलमात्र भोग सकते है। वहीं उन्होंने व्यक्ति को मोहमाया छोड़कर भगवान को याद करना चाहिए। भगवान के लिए सब प्राणी समान है। उन्होंने कहा कि परमात्मा प्रेम के भूखे हैं और प्रेम भाव रखने वाले व्यक्ति पर  हमेशा कृपा दृष्टि रखते हैं। वहीं कहा कि जीभ पर अमृत व जहर दोनों हैं। ऐसे में हमेशा मीठी वाणी बोलनी चाहिए। वहीं प्राणी मात्र पर दया का भाव रखना चाहिए।


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