गुरू के वंचनों पर शंका करना शिष्यत्व पर कंलक - स्वामी सच्चिदांनद ने कहा कि गुरु ज्ञान गुरु से भी अधिक महत्वपूर्ण है। शिष्य गुरु को मानते हैं पर उनके संदेशों को नहीं मानते। इसी कारण उनके जीवन में और समाज में अशांति बनी रहती है। गुरु के वचनों पर शंका करना शिष्यत्व पर कलंक है। जिस दिन शिष्य ने गुरु को मानना शुरू किया उसी दिन से उसका उत्थान शुरू हो जाता है और जिस दिन से शिष्य ने गुरु के प्रति शंका करनी शुरू की, उसी दिन से शिष्य का पतन शुरू हो जाता है। गुरू एक ऐसी शक्ति है जो शिष्य की सभी प्रकार के ताप-शाप से रक्षा करती है। शरणा गत शिष्य के दैहिक, दैविक, भौतिक कष्टों को दूर करने एवं उसे बैकुंठ धाम में पहुंचाने का दायित्व गुरु का होता है।
मानव शरीर पाने के लिए स्वर्ग के देवता तरसते है - स्वामी सच्चिदांनद ने मानव जीवन के महता के बारे में वर्णन करते हुए कहा कि चौरासी लाख योनियों के मध्ये मानव तन परमपिता परमात्मा की सर्वाेतम कृति है। उन्होंने कहा कि जिस शरीर को पाने के लिए स्वर्ग के देवता तरसते रहते है, वह आपको मिल चुका है। दृश्यमान जगत में इस शरीर के अतिरिक्त जितने शरीर है, समस्त योग योनि का गयी है, अर्थात उन शरीरों के द्वारा केवल पूर्व जन्म कृत कर्मों का फलमात्र भोग सकते है। वहीं उन्होंने व्यक्ति को मोहमाया छोड़कर भगवान को याद करना चाहिए। भगवान के लिए सब प्राणी समान है। उन्होंने कहा कि परमात्मा प्रेम के भूखे हैं और प्रेम भाव रखने वाले व्यक्ति पर हमेशा कृपा दृष्टि रखते हैं। वहीं कहा कि जीभ पर अमृत व जहर दोनों हैं। ऐसे में हमेशा मीठी वाणी बोलनी चाहिए। वहीं प्राणी मात्र पर दया का भाव रखना चाहिए।
एक टिप्पणी भेजें